फणीश्वरनाथ रेणू


साहित्य के प्रति मेरा लगाव अगर बढ़ा तो वजह बने रेणु जी। इण्टरमीडिएट में था तो काॅलेज में वीभा जी हिंदी की शिक्षिका थी, वो मुझे हमेशा कहती थी की हिन्दी में फेल हो जाओगे तो सबमें फेल हो जाओगे। उस समय मैम से कह देता था अरे नहीं मैम परीक्षा से एक दिन पहले पढ़कर पास हो जाएंगे।मैम बताईये अगर अपनी मातृभाषा में भी फेल हो जाएंगे तो हदे नहीं हो जाएगा, विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी होने के कारण गणित और विज्ञान में ज्यादा रुचि थी ।

मित्र मंडली भी ऐसी थी जिसमें काॅलेज की यादों को हमेशा के लिए जीवंत रखने के लिए कुछ ना कुछ करामात करते रहते थे। दीपावली समीप था काॅलेज में सातवीं घंटी में हिंदी की क्लास चलती थी। हर रोज़ के जैसे एक दिन सातवीं घंटी बजा उस समय वीभा मैम सीढ़ियों से ऊपर आ रहीं थी हम सभी के क्लास से पटाखे बजने की आवाज शायद उन्होंने सुन लिया था मैं एक और पटाखा बजाने ही वाला था तब तक बाहर बरामदे से मैम ने मुझे देख लिया, अब क्या अब मैं कहाँ बच कर जाने वाला था क्लास में प्रवेश करते ही मैम ने कहा बालानाथ खड़े हो जाओ तुम्ही पटाखे बजाए हो ना, मेरे हाथ में पटाखे था लेकिन पकड़े जाने के डर से मैने डेस्क के नीचे पटाखे गिराकर एक सभ्य लड़के की तरह बोला नहीं मैम मैने नहीं बजाया तभी मैम ने समीप आकर डेस्क के नीचे पड़े पटाखे को देख कर कहा, ये क्या है?

मेरे मन में ये डर था कि मैम किताब पढ़ने को न कह दे। दो डस्टर मार ले वो अच्छा रहेगा लेकिन वही हुआ जिसका डर था मैम ने दण्ड के रुप में पंचलाइट पढ़ने को कह दिया। अब क्या हमारा सांस ऊपर नीचे होने लगा चार पांच पृष्ठ की पंचलाइट कैसे पढ़ पाएंगे। लेकिन पढ़ना तो पड़ेगा मैने अपने बस्ते से किताब निकाला और पढ़ना प्रारम्भ कर दिया मैं कहानी पढ़ रहा था तो लग रहा था जैसे रेणु जी के लेखन में दृश्य किसी चलचित्र की तरह आपके आगे से गुज़र रहे हो।रेणु जी ने ग्रामीण जीवन का वास्तविक दर्शन पंचलाइट कहानी में कराया हैं। शायद वह मेरे जीवन में पहली बार था कि दण्ड के रुप में पारितोषिक मिला था। 

पंचलाइट कहानी में रेणु जी ग्रामीण समाज में निहित अज्ञानता पर सवाल उठाते है। जिस प्रकार किसी गाँव में पंचायत का अपना दल होता है उसी प्रकार इस कहानी में भी अनेक दलों का जिक्र किया गया है जैसे बामन टोली, राजपूत टोली इत्यादि। गाँव में अलग टोले बने हैं एक टोले में पंचलाइट आ जाने से दूसरे टोले के लोगों में भी पंचलाइट लाने की होड़ लग जाती है। क्योंकि यह अब उस टोले की इज्जत का सवाल है। एक दिन गाँव के लोग मेले से सार्वजानिक उपयोग के लिए पंचलाइट ले आते है, लेकिन तभी पता चलता है कि इसे जलाना तो किसी को नहीं आता। जब यह बात दूसरे टोले के लोगों को पता चलती है तो वे ऐसे में गाँव वालों के भोलेपन और पंचलाइट जलाना न आने की स्थिति पर हँसते हैं। तभी एक नौजवान ने आकर सूचना दी कि- "राजपूत टोली के लोग हँसते-हँसते पागल हो रहे हैं। कहते है, कान पकड़कर पंचलाइट के सामने पाँच बार उठो बैठो, तुरन्त जलने लगेगा।” इस प्रकार कहानी में विभिन्न जाति और वर्गों में विभाजित गाँव का चित्रण बखूबी किया है। एक टोले का दूसरे टोले के प्रति बिलगाव, गाँव के टोले की पंचायत, आपसी राग-द्वेष आदि ग्रामीण समाज का यथार्थ रूप हमारे सामने लाते है। इस कहानी में प्रेम प्रसंग भी देखने को मिलता है जिसमें गाँव के एक युवक गोधन को मुनरी नामक लड़की से प्रेम है परन्तु ग्रामीण समाज में यह उचित नही समझा जाता जिस कारण ही पंचायत द्वारा ही गोधन का गाँव से बहिष्कार कर दिया जाता है। जब गाँव वालों से पंचलाइट नहीं जल पाती तब मुनरी अपनी सहेली के माध्यम से पंचों से कहलवाती है कि गोधन को पंचलाइट जलाना आता है।

पंच लोग दूसरे गाँव से पंचलाइट  जलाने के लिये किसी को बुलाने की बेइज्ज़ती से बचने के लिये अंततः गोधन को माफ कर देते हैं और उसका हुक्का-पानी बहाल कर दिया जाता है और गोधन के माध्यम से यह पंचलाइट जल जाती है।रेणु जी को जितनी ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली, उसकी मिसाल मिलना दुर्लभ है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। उनको जितनी प्रसिद्धि उपन्यासों से मिली, उतनी ही प्रसिद्धि उनको उनकी कहानियों से भी मिली। ठुमरी,आदिम रात्रि की महक, अगिनखोर, एक श्रावणी दोपहरी की धूप, अच्छे आदमी, सम्पूर्ण कहानियां, आदि उनके वो प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं जिन्होंने चारो तरफ ख्याति बटोरी।


- बालानाथ राय

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