इस संकट के दौरान ऊर्जा मंत्री राजकुमार सिंह ने एक अंग्रेजी अखबार के एक साक्षात्कार में बताया कि मैं नहीं जानता कि आने वाले पांच से छह महीनों में भी हम ऊर्जा के मामले में आरामदायक स्थिति में होंगे। 40 से 50 गीगावॉट की क्षमता वाले कोयला प्लांट्स में तीन दिन से भी कम का ईंधन बचा है। सरकारी मंत्रालय कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और राष्ट्रीय तापविद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी लिमिटेड) जैसी सरकारी कोयला कंपनियों से कोयले के खनन को बढ़ाने के लिए काम कर रही है ताकि मांग के मुताबिक बिजली बन सके। देश में कोयले की कमी के कारण विद्युत उत्पादन निगम के कई पावर प्लांट अभी बंद चल रहे हैं।कोयले की अभाव के वजह से उत्तर प्रदेश में लगभग 6873 मेगावाट बिजली की उपलब्धता घट गई है, जिसके कारण बिजली सकंट खड़ा हो गया है।
दरअसल, प्रदेश में बिजली की मांग 17000 मेगावाट के आसपास बनी हुई है, जिसके कारण बिजली की उपलब्धता 15000 से 16000 मेगावाट हो पा रही है। ऐसे में 2000 मेगावाट तक की बिजली कटौती करनी पड़ रही है। 2000 मेगावट की कमी के चलते हालात यह हो गई है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहां 18 घंटे बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए थी। वहाँ 12 से 13 घंटे और वहीं तहसीलों क्षेत्रो में भी 21 घंटे के बजाय करीब 17 घंटे ही बिजली आपूर्ति हो पा रही है। उत्तर प्रदेश के हरदुआगंज की 250 मेगावॉट की यूनिट बंद हो गई है। वहीं, पारीछा पावर प्लांट की 210 और 250 मेगावॉट की यूनिटें बंद हो गई हैं। जो यूनिटें चल भी रही हैं, उन्हें भी क्षमता से आधे या फिर उससे भी कम लोड पर संचालित करना पड़ रहा है।
पावर कॉरपोरेशन को इन यूनिटों से प्राइवेट पावर प्लांटों के मुकाबले काफ़ी सस्ती बिजली मिलती है। ऐसे में इन पावर प्लांट बंद होने से पावर कॉरपोरेशन पर वित्तीय बोझ भी बढ़ा है। बिजली आपूर्ति के लिए एक्सचेंज से महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। बिजली विभाग के इंजिनियरों के मुताबिक कई कोयला ब्लॉक्स का भुगतान भी बकाया होने की वजह से कोयले की अभाव है। हाल यह है कि खदानों के पास वाले पावर प्लांटों में इस समय 3 से 4 दिन का ही कोयला बचा है जबकि वहीं दूर स्थित यूनिटों में कोयला खत्म हो गया है। त्योहारी सीजन के समय में बिजली का संकट देश की अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर है। कोरोना महामारी के झटके से उबर रही अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ सकती है। दरअसल, बिजली संकट की वजह से इंडस्ट्री में प्रोडक्शन, सप्लाई और डिलीवरी समेत वो सबकुछ प्रभावित होगा जो अर्थव्यवस्था के लिए जरिया हो सकता हैं।
इसका असर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई से जोड़कर देखा जा सकता है। हालांकि यह संकट ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगा। सी. आई. एल. कोल इंडिया लिमिटेड ने अपना उत्पादन बढ़ाया है और अपनी वेयरहाउसिंग नीति में भी कुछ बदलाव किए हैं। इसका असर जल्द देखा जा सकता है। दरअसल उसके सामने दो तरफा मुश्किल है। एक तरफ कोयले के खनन को कम करने और उस पर देश की निर्भरता को कम करने का दबाव है, और दूसरी तरफ, जब अक्षय ऊर्जा की कठिनाइयों के कारण बिजली की मांग बढ़ जाती है, तो कोल इंडिया लिमिटेड को कोयले की आपूर्ति की उम्मीद है। ऐसे में कहा जा सकता है कि वह जल्द ही कोयला संकट से उभरने का हल ढूंढ लेंगे।
- बालानाथ राय
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