तालिबान भारत के लिए चिंता का विषय



फ़ग़ानिस्तान पर तालिबान जिहादियों ने बल पूर्वक पूरी तरह से अपना कब्ज़ा जमा लिया है अफ़ग़ानी सेना ने बहुत आसानी से अपनी राजधानी काबुल को सौंपते हुए तालिबान लड़ाकों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।सोशल मीडिया के माध्यम से राष्ट्रपति गनी ने अफ़ग़ान नागरिकों को संबोधित करते हुए तर्क दिये कि राजधानी को छोड़ना एक कठिन फ़ैसला था जो कि उन्होंने रक्तपात को रोकने के लिए लिया। उनके रहते हुए तालिबान के काबुल में आने के बाद झड़प होती जिससे लाखों लोगों की ज़िंदगियां ख़तरे में पड़ जाती। आज मुझे एक मुश्किल फ़ैसला करना था कि या तो मैं सशस्त्र तालिबान जो राष्ट्रपति भवन में दाख़िल होना चाहते थे,उनके सामने खड़ा हो जाऊं या फिर अपने प्यारे मुल्क जिसकी बीते 20 सालों में सुरक्षा के लिए मैंने अपनी ज़िंदगी खपा दी उसे छोड़ दूं।


अगर इस दौरान अनगिनत लोग मारे जाते और हमें काबुल शहर की तबाही देखनी पड़ती तो उस 60 लाख आबादी के शहर में बड़ी मानवीय त्रासदी हो जाती। तालिबान ने तलवारों और बंदूक़ों के ज़ोर पर जीत हासिल कर ली है, और अब मुल्क की अवाम के जानो माल और इज़्ज़त की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी तालिबान पर है। राष्ट्रपति गनी ने कहा, "मगर वो दिलों को जीत नहीं सकते हैं, इतिहास में कभी भी किसी को सिर्फ़ ताक़त से ये हक़ नहीं मिला है और न ही मिलेगा। अब उन्हें एक ऐतिहासिक परीक्षा का सामना करना है, या तो वो अफ़ग़ानिस्तान का नाम और इज़्ज़त बचाएंगे या दूसरे इलाक़े और नेटवर्क्स।"

लेकिन उन अफ़ग़ानी लोगों का क्या जिन्हें दहशत के साये में मरने के लिए अकेला छोड़ गए, जिस तरह राष्ट्रपति गनी ने आत्मसमर्पण किया, अफ़ग़ानी जनता को उनसे ये उम्मीद नहीं थी वे एक भगोड़ा, अकुशल, डरपोक, शासक साबित हुए।तालिबान ने अफ़गानिस्तान में शरिया कानून लागू करना शुरू कर दिया है, वहीं भारत के पड़ोसी देश चीन ने भी तालिबान को खुला समर्थन दे दिया है। चीन ने तालिबान के इस कब्जे के कदम का स्वागत किया है। चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि चीन अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के साथ दोस्ताना और सहयोगपूर्ण रिश्ते कायम करना चाहता है। चिंता की बात जाहिर है अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का तख़्तापलट होने से भारत में ख़तरा बढ़ गया है लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन जो पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान के बॉर्डर इलाके को अपना बेस बनाए हुए हैं, तालिबान के आने से वह पूरे इलाके में अपना ठिकाना बना सकते हैं।

 अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कंट्रोल का मतलब यह भी है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का अपर-हैंड रहेगा। पिछले 20 सालों में भारत ने अफगानिस्तान में जो विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर काम किया है, वह भी धूमिल पड़ सकता है। अफ़ग़ानिस्तान की संसद, काबुल में स्टोर महल, हबीबिया स्कूल का निर्माण, इंदिरा गांधी चिल्ड्रन हॉस्पिटल, पुल ऐ खुमरी से काबुल तक बिजली ट्रांसमिशन लाइन की स्थापना, कंधहार में अफगान नेशनल एग्रीकल्चर साइंस यूनिवर्सिटी, चिमतला पावर स्टेशन, कंधहार में क्रिकेट स्टेडियम, कई प्रांत में टेलीफोन एक्सचेंज, राष्ट्रीय टेलीविजन नेटवर्क, कई जलाशय, काबुल परिवहन व्यवस्था के लिए बसें, अफगान आर्मी के लिए बसें, वायुसेना के लिए MI25 और MI36 हेलीकॉप्टर, राष्ट्रीय एयरलांइस के लिये एयरबस विमान, अफगानी बच्चों के लिए स्कॉलरशिप ऐसे छोटे-बड़े 400 जितने प्रोजेक्ट हैं।

भारत सरकार ने उसे पूरा करके अफगानी जनता को सौंप दिया, लेकिन अब शिक्षा और महिला के संदर्भ में तालिबानी सोच अलग होने से भारत द्वारा बनाए गए स्कूलों और महिलाओं के लिए रोजगार उपलब्ध कराने की योजनाए बंद होने का अन्देशा जताया जा रहा है। अफ़ग़ानिस्तान के अधिग्रहण के साथ, तालिबान अब भारत के जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा से केवल 400 किमी दूर है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 के हटाए जाने के बाद से ही शांतिपूर्ण स्थिति कायम है। 05 अगस्त को 370 हटाए जाने के दो साल शांति से भी पूरे हो गए हैं ऐसे में कश्मीर में तालिबान के गड़बड़ी करने की भी आशंका बढ़ गई है।तालिबान के कब्ज़े वाले क्षेत्र से भाग रहे आम अफ़ग़ान नागरिकों की तस्वीरें तालिबान के असल चरित्र को साफ़ दर्शा रही है यदि तालिबान अफ़ग़ानियों के मुश्किलों को दूर करने वाली ताकत होती तो अफ़ग़ानिस्तान की जनता उसकी स्वागत करती। भारत के सामने एक बड़ी चुनौती अफ़ग़ानिस्तान से बड़ी संख्या में आने वाले अफ़ग़ानी शरणार्थी को लेकर भी होगी। भारत सरकार को आने वाले वक्त में अफ़गान के साथ बहुत सोच समझकर कदम रखना होगा। इस मुद्दे को भारत सरकार कैसे संभालेगी, यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा। 

- बालानाथ राय

गाज़ीपुर, उत्तर-प्रदेश

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