दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर प्रचंड जीत हासिल की है। विधानसभा की 70 सीटों में से आम आदमी पार्टी को 62 सीटें मिलती दिख रही हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी 8 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। कांग्रेस का खाता इस बार भी नहीं खुल सका। तमाम विरोधों के बावजूद उन्हें फिर पांच साल तक जनता की सेवा करने का मौका मिला है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा, जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से दिल्ली अभियान का नेतृत्व और नेतृत्व किया, यू.पी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई रैलियों को संबोधित किया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन बार मंच संभाला।जैसा कि मतों की गणना की जाती है, ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली चुनाव में स्थानीय होने से आम आदमी पार्टी के प्रयास सफल हुए हैं, जबकि भाजपा की राष्ट्रीयकरण और ध्रुवीकरण करने की बोली विफल रही है।
वोट शेयर के मामले में कांग्रेस अब तक एक शो नहीं बना पाई है। दिल्ली वालों ने हिंदू-मुसलमान और ध्रुवीकरण की सियासत को नकारते हुए काम को तवज्जो देते जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि अब वोट उसी को, जो हमारी सुनेगा, जो मोहल्ला क्लीनिक बनाएगा, 24 घंटे बिजली देगा, सस्ती बिजली देगा, घर-घर को पानी देगा।
ये नई राजनीति है, ये देश के लिए शुभ संदेश है।लेकिन सवाल ये है कि बीजेपी के सबसे बड़े प्रचार अभियान के बावजूद आखिर यह सब कैसे हुआ। जनता ने केजरीवाल को ही आख़िर क्यों चुना?चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में आम आदमी पार्टी ने भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी यानी सीएम उम्मीदवार के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और उन्हें इसका फायदा भी हुआ।
अरविंद केजरीवाल ने चुनावी सभाओं से लेकर प्रेस कांफ्रेंस तक हर जगह अमित शाह को सीएम उम्मीदवार घोषित करने की चुनौती दी, मगर भाजपा जनता के बीच इस मुद्दे पर भी कुछ खास जवाब देने में कामयाब नहीं रही। यह आम आदमी पार्टी की जीत की सबसे बड़ी वजह है कि किसी भी विपक्षी पार्टी के पास केजरीवाल के कद का कोई भी उम्मीदवार नहीं था। आम आदमी पार्टी ने अपना पूरा चुनाव बहुत सधा हुआ रखा। किसी भी नेता ने कोई भड़काऊ बयान नहीं दिया।
इसी के साथ सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं एक सुर में अपने पांच साल के कार्यों का प्रचार करते रहे। पूरे प्रचार को काफी पॉजिटिव रखा गया, आम आदमी पार्टी ने भाजपा के उलट मुद्दों पर बात की। भाजपा के बड़े नेताओं पर आरोप लगाते समय भी काफी सतर्कता बरती गई।आम आदमी पार्टी ने चुनाव प्रचार में जबरदस्त सतर्कता बरती है। आप ने पूरे चुनाव प्रचार में एक बार भी पीएम मोदी पर निशाना नहीं साधा। पार्टी के पूरे शीर्ष नेतृत्व ने पांच साल के काम के नाम पर वोट मांगा। आम आदमी पार्टी ने भाजपा के परंपरागत वोटर का भी पूरा ध्यान रखा, पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो भाजपा के सर्मथकों तक से वोट मांग लिया। जो मुद्दे हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कर सकते थे उन पर योगी, गिरिराज जैसे नेताओं के उकसाने के बावजूद संभलकर बोले।
आम आदमी पार्टी यह समझने में कोई गलती नहीं की कि अगर उन्होंने पीएम मोदी पर कोई वार किया तो उन्हें इसका खामियाजा भुगताना पड़ेगा और उनके इस दांव ने काम भी किया।आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल बिजली और पानी के मुद्दे को पूरी तरह भुनाने में कामयाब रहे। पूरी पार्टी ने बिजली, पानी और शिक्षा के क्षेत्र में हुए कार्यों को जनता तक पहुंचाया। पूरे प्रचार के दौरान केजरीवाल ने जब-जब जनता से संवाद किया तब-तब जनता ने मुफ्त बिजली-पानी के मुद्दे पर केजरीवाल की बात पर हुंकार भरी।
हालांकि भाजपा ने जनता के बीच फ्री सुविधाओं के प्रति एक नकारात्मक छवि पैदा करने की कोशिश की, जिसमें वे पूरी तरह से विफल रहे।मोहल्ला क्लीनिक ने भी केजरीवाल सरकार को काफी लोकप्रियता दिलाई। आम आदमी पार्टी, मोहल्ला क्लीनिक पर लगी भीड़ को वोटों में तब्दील करने में कामयाब रही। आप सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को आकर्षित किया।
वोट मांगने की बेबाकी, केजरीवाल ने बहुत ही साफगोई से अपने काम पर वोट मांगा। एलान देकर कहा कि यदि मैंने काम किया है तभी वोट देना हालांकि भाजपा ने मोहल्ला क्लीनिक के मुद्दे पर भी आम आदमी पार्टी को घेरने की कोशिश की पर चुनावों परिणामों को देखे तो वह इसमें भी पूरी तरह विफल नजर आए।जनता का विश्वास जीता, इसलिए वोटरों ने कभी उनका फैक्ट चेक नहीं किया। नतीजा यह कि बिजली-पानी पर बीजेपी-कांग्रेस के बड़े-बड़े वादे भी लोगों ने ठुकरा दिए।
一 बालानाथ राय
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