भारत सरकार या शासन के खिलाफ किसी भी प्रकार के आंदोलन के समय लोग हिंसा का सहारा लेते हैं अपनी बात मनवाने के लिए जिससे शासकीय व सामाजिक संपत्ति का नुकसान होता है जो भारत के प्रत्येक नागरिक के कर के द्वारा जिसका क्रय किया जाता है। लोकतंत्र में अपनी बात रखने का सबको हक होना चाहिए किन्तु हिंसा का सहारा लेकर सामाजिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा कर हम स्वयं का नुकसान करते हैं।
किसी भी लोकतंत्र में अपनी बात रखने के लिए हिंसा का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि ये सभी आन्दोलन अचानक ही शुरू होते हैं और चन्द दिनों में हजारों करोड़ की सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को क्षतिग्रस्त करने के बाद सरकार से आश्वासन मिलते ही शांत हो जाते हैं।
शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से विरोध प्रकट करने का अधिकार प्रत्येक नागरिक, संगठन और राजनीतिक दल को है लेकिन इस दौरान हिंसा, विशेषकर सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, दंडनीय अपराध है। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि यदि विरोध प्रदर्शन और आन्दोलनों के पीछे राजनीतिक दलों की मिलीभगत और सरकारी अमले की, भले ही छोटे स्तर पर, सांठगांठ नहीं हो तो ये आन्दोलनकारी सार्वजनिक और निजी संपत्ति को अपने आक्रोष का निशाना बनाने का साहस नहीं कर सकते हैं।
आवश्यकता है कि हिंसक गतिविधियों में लिप्त तत्वों और उनके नेताओं की पहचान की जाये तथा निजी और सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई ऐसे लोगों से ही करायी जाये। सरकार के खिलाफ विद्रोह या असहमति का यह मतलब नहीं होता कि हम राष्ट्र की संपत्ति को नुकसान पहुंचाएं जोकि हमारी सुविधा के लिए ही उपलब्ध है रेलवे , बस ,मेट्रो सार्वजनिक स्थल आदि को नुकसान पहुंचाकर लोग अपना विरोध दर्ज कराना चाहते हैं जो कि अत्यंत निंदनीय है ऐसे लोगों के खिलाफ शासन को सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। शीर्ष अदालत के 2009 के फैसले के छह साल बाद 2015 में गृह मंत्रालय सक्रिय हुआ और उसने इस कानून में प्रस्तावित संशोधनों पर सुझाव मंगाये।
गृह मंत्रालय को फरवरी, 2016 तक कानून में प्रस्तावित संशोधनों के बारे में अनेक सुझाव मिल चुके थे। लेकिन इसके बावजूद इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुयी हैं।ऐसा लगता है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के इन सुझावों को संप्रग सरकार के बाद राजग सरकार ने भी गंभीरता से कभी लिया ही नहीं और आन्दोलनों के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का सिलसिला यूं ही यथावत चलता रहा। ऐसी स्थिति में आवश्यक है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से रोकथाम कानून के तहत दंगाई के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाये और हिंसा तथा तोड़फोड़ करने वाले तत्वों की जवाबदेही तय कर उनसे राजस्व बकाये के रूप में इस नुकसान की वसूली की जाये।
जिससे कि इस प्रकार के कार्यवाही करने वाले असामाजिक तत्वों को दंड मिले नहीं तो यह बहुत ही भयावह परिस्थिति को जन्म देगा समाज के किसी भी वर्ग विशेष या व्यक्तियों को इस बात की इजाजत नहीं दी जा सकती कि वह अपना विरोध देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर करें महात्मा गांधी के अनुसार भी अहिंसा का मार्ग से ही अपनी बातें सामने रखनी चाहिए प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए इस प्रकार से लोगों की बातें अनसुनी ना हो जो कि अन्य प्रकार के आक्रोश का कारण बने भारत लोकतांत्रिक देश है और हम सबको इस पर गर्व होना चाहिए।
一 बालानाथ राय
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