ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह


 अपने आवाज़ के जादू से करोड़ो लोगों को सम्मोहित करने वाले जगजीत सिंह जी की आवाज जिसे सुनकर कभी आंखें भर आती हैं तो कभी चेहरे पर मुस्कान छा जाती है तो कभी अकेलेपन का साथी बन जाती है। उर्दू की जायदाद समझी जाने वाली ग़ज़ल और शायरी को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हैं जगजीत सिंह यही कारण है कि उन्हें ग़ज़ल की दुनिया का सम्राट कहा जाता है। उनकी आवाज़ आज भी इस शोर-शराबे से भरी दुनिया में सुकून महसूस कराती है। ०८फरवरी १९४१ को राजस्थान के श्री गंगानगर में एक सिख परिवार में जन्मे जगजीत सिंह का बचपन का नाम जगमोहन था। पिता सरदार अमर सिंह धीमान ने अपने गुरु के परामर्श पर उनका नाम जगमोहन से बदल कर जगजीत रख दिया। सिंह ने अपना प्रारम्भिक जीवन बीकानेर में बीताया उनके पिता वहीं पर लोक निर्माण विभाग में कार्यरत थे। जगजीत सिंह चार भाई दो बहन थे। 

जगजीत जी ने एक टीवी समाचार के साक्षात्कार के दौरान बताया था कि मैं बचपन में बहुत शरारती हुआ करता था। पढ़ाई में बहुत दिलचस्पी नहीं थी घरवालों से चोरी छुपे फ़िल्में देखने जाया करता था। उन्होंने ने बताया कि जब पैसा नहीं होता था तो टिकट कलेक्टर को चकमा देकर सिनेमा हाल में घुस जाया करतें थे। उन्होंने बताया कि एक दिन पिता जी को मालूम हो गया कि मैं फ़िल्म देखने गया हूँ फ़िर वे आए और कान पकड़ कर घर लाए और फ़िर बहुत पिटाई भी की। उनके पिता की इच्छा थी की जगजीत एक प्रशासनिक सेवा अधिकारी बने लेकिन जगजीत जी का मन हमेशा मौसिक़ी में लगा रहता था। उनके पिता को भी संगीत पसंद था तो उन्हें पंडित छगनलाल शर्मा के यहाँ संगीत सीखने के लिए भेज दिए वहाँ दो वर्ष तक उनसे संगीत सीखने के बाद उन्होंने सेनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान से प्रशिक्षण लिया।

 बचपन में वे गुरुद्वारे में भजन श्लोक गाते थे। साक्षात्कार के दौरान अपने उस समय को याद करते हुए सिंह जी ने बताया कि साल १९५५ में जब वे नौवीं में था तब श्री गंगानगर काॅलेज के दौरान एक रात तकरीबन चार हज़ार लोगों के बीच गानें का मौका मिला वह मेरा पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। उस समय मैं बहुत उत्साहित था जिसमें मैंने एक पंजाबी गीत गाया था। जिस पर जनता का बहुत प्यार मिला तालियां बंजी उस समय मुझे तकरीबन १२५ रुपया का पुरस्कार जनता ने दिया था। उच्च शिक्षा के लिए जगजीत सिंह ने जालंधर के डीएवी महाविद्यालय में दाख़िला कराया। जालंधर में, जगजीत सिंह ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) में शामिल हुए। आकाशवाणी ने उन्हें बी ग्रेड कलाकारों के वर्ग में रखा और जिसके चलते उन्हें सबसे कम शुल्क भुगतान पर एक वर्ष में ६ लाइव संगीत खंडों की रिकॉर्डिंग की अनुमति दी गई। वर्ष १९६० के शुरुआती दिनों में, वह फिल्म प्लेबैक गायन में करियर के लिए बॉम्बे (मुंबई) गए। वहां उन्होंने संगीतकार जयकिशन से मुलाकात की और उन्हें जगजीत की आवाज़ बहुत पसंद आई, लेकिन वह उन्हें कोई बड़ा ब्रेक नहीं दे पाए। कुछ समय बाद उनके सारे पैसे समाप्त हो गए और वह वापिस जालंधर लौट आए। एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि, पैसों की कमी के कारण बॉम्बे से जालंधर बिना टिकट के बाथरूम में छिप कर सफ़र तय किया था। वर्ष १९६२ जालंधर में, उन्होंने भारत दौरे पर आए, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के लिए एक स्वागत गीत बनाया।

 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पीजी की शिक्षा ले रहे थे तब संगीत में दिलचस्पी देखकर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान सिंह ने उन्हें बाम्बे (मुम्बई) जाने को कहा और मार्च १९६५ में पुनः जगजीत जी बाॅम्बे (मुम्बई) में फ़िल्मों में पार्श्वगायन में अपनी किस्मत आज़माने की कोशिश की। तब रोटी रोज़ी के लिए कॉलेज और ऊंचे लोगों की पार्टियों में अपनी पेशकश दिया करते थे। उन दिनों तलत महमूद, मोहम्मद रफ़ी साहब जैसों के गीत लोगों की पसंद हुआ करते थे। रफ़ी-किशोर-मन्नाडे जैसे महारथियों के दौर में पार्श्व गायन का मौक़ा मिलना बहुत दूर था। 

इसीबीच उनकी मुलाकात उनकी पत्नी चित्रा से हुई जहाँ चित्रा रहती थी वहीं बगल में एक गुजराती परिवार रहता था अक्सर जगजीत सिंह वहाँ गीत रिकार्ड के लिए आते थे एक दिन उनकी आवाज़ को सुनकर चित्रा ने पड़ोसी से उनके बारें में पुछा था। फ़िर साल १९६७ में जब जगजीत सिंह और चित्रा एक ही स्‍टूडियो में रिकॉर्ड कर रहे थे, इस दौरान उनकी चित्रा जी से बात हुई। रिकार्डिंग के बाद चित्रा जी ने उन्हें कहा कि, मेरा ड्राईवर आपको आपके घर तक छोड़ देगा।

रास्‍ते में चित्रा जी का घर आया तो उन्‍होंने जगजीत जी को चाय पर बुलाया। इसी दौरान जगजीत जी एक ग़ज़ल गुनगुनाते हैं और चित्रा जी किचन में सुन लेती हैं। चित्रा जी जगजीत जी से पूछती हैं किसकी है, जगजीत कहते हैं 'मेरी है'। चित्रा जी पहली बार जगजीत जी से इंप्रेस हो जाती हैं। इसके बाद जगजीत जी और चित्रा जी अक्‍सर मिलने लगे और एकदूसरे को पसंद करने लगे और चित्रा जी को अपने पति देबू से दूरियां बढ़ती गई, देबू भी किसी और को पसंद करने लगे थे। इसके बाद चित्रा और देबू का आपसी रजामंदी से तलाक हो गया। १९७० में देबू ने दूसरी शादी कर ली उनकी एक बेटी भी हुई। जगजीत जी देबू के पास गये और उनसे कहा, मैं चित्रा से शादी करना चाहता हूं तब देबू उन्‍होंने इजाजत दी तो दोनों ने शादी कर ली। एक साक्षात्कार के दौरान जगजीत जी याद करते हैं, ‘संघर्ष के दिनों में कॉलेज के लड़कों को ख़ुश करने के लिए मुझे तरह-तरह के गाने गाने पड़ते थे क्योंकि शास्त्रीय गानों पर लड़के हुट कर देते थे।’ कुछ दिनों तक संघर्ष करने के बाद मशहूर म्यूज़िक कंपनी एच एम वी (हिज़ मास्टर्स वॉयस) को लाइट क्लासिकल ट्रेंड पर टिके संगीत की दरकार थी। जगजीत जी ने वही किया और पहला एलबम ‘द अनफ़ॉरगेटेबल्स (१९७६)’ हिट रहा। जगजीत जी उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ‘उन दिनों किसी सिंगर को एल पी (लॉग प्ले डिस्क) मिलना बहुत फ़ख्र की बात हुआ करती थी।’

 बहुत कम लोग जानते हैं कि सरदार जगजीत सिंह धीमान इसी एलबम के रिलीज़ के पहले जगजीत सिंह बन चुके थे। बाल कटाकर असरदार जगजीत सिंह बनने की राह पकड़ चुके थे। जगजीत ने इस एलबम की कामयाबी के बाद मुंबई में अपना पहला फ़्लैट ख़रीदा था। कुछ समय बाद उन्हें फ़िल्मों के प्रस्ताव आने लगे।  साल १९८० में उन्होंने ‘साथ-साथ’ फ़िल्म में जावेद अख़्तर की ग़ज़लों और नज़्मों को अपनी आवाज़ दी , उसी साल महेश भट्ट की फ़िल्म ‘अर्थ’ से जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की प्रसिद्धि आसमान छूने लगी। उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में कई गीत गाए ‘मैं रोया परदेस में’, ‘दैरो हरम में रहने वालों’, ‘मैखाने में फूट न डालो’, ‘मैं नशे में हूं, हम तो हैं परदेस में’, ‘कागज की कश्‍ती’, ‘हे राम’, ‘बांके बिहारी’ ‘कृष्‍ण मुरारी मेरी बारी कहां छिपे’ जैसे हजारों गीत-ग़ज़ल ऐसे हैं जिनको लेकर उन्‍होंने अनूठे प्रयोग किए। संगीत और सुरों की जुगलबंदी में उनका कोई जवाब नहीं था। 

लोग उनकी आवाज में इस कदर शामिल हो जाते थे कि उनके साथ ही गुनगुनाने लगते थे। लंदन के एलबर्ट हॉल इसका एक उदाहरण है, जहां ‘मैं नशे में हूं’ को लोगों ने साथ साथ गुनगुनाया था और इस तरह जगजीत सिंह गीत में सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ते गए। जगजीत सिंह ने कई बड़े शायरों जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब, कैफ़ी आज़मी, सुदर्शन फ़ाक़िर, निदा फ़ाजली की शायरी को अपनी आवाज दी। सुदर्शन फाकिर की लिखी हुई नज़्म ‘कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी’ को जगजीत ने अपनी रूहानी आवाज में गाया है। इस गीत को जब भी सुना जाता है लोग अपने बचपन की यादों में खो जाते हैं।जगजीत जी ने साल १९८७ में ‘बियोंड टाइम’ रिकॉर्ड किया, यह किसी भी भारतीय संगीतकार की पहली डिजिटल सीडी थी।

 जगजीत सिंह और चित्रा अपने पेशेवर ज़िंदगी की बुलंदियों को छू ही रहे थे कि उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी त्रासदी हो गई। साल १९९० में उनका १८ वर्षीय बेटा विवेक का लंदन में एक कार दुर्घटना में निधन हो गया। बेटे की मौत के सदमे ने मानों माता-पिता की दौड़ती ज़िंदगी पर विराम लगा दिया हों। चित्रा जी इस दर्द को सहन नहीं कर पाई और अपनी आवाज़ खो बैठी और फ़िर कभी दोबारा स्टेज पर लौट कर नहीं आई । 

जगजीत सिंह भी सदमे में चले गए और कई महीनों तक बोलना बंद कर दिया, बेटे के अचानक चले जाने के ग़म ने पिता को भी कई महीनों तक खामोश कर दिया। लेकिन करीब छह महीने बाद सीने में इस सदमे को दबाए जब जगजीत सिंह वापस ग़ज़ल गायकी की दुनिया में लौटे तो उनकी आवाज में किसी के खोने का दर्द कई गुना बढ़ा हुआ नज़र आया। ‘चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए..’ 

हिन्दुस्तान के ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। साल १९९८ में जगजीत सिंह को मध्य प्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर सम्मान से नवाजा था। भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में साल २००३ में जगजीत सिंह को पद्म भूषण सम्मान से पुरस्कृत किया गया था। वही सन २००५ में दिल्ली सरकार द्वारा ग़ालिब अकादमी पुरस्कार भी दिया गया था। संगीत नाटक पुरस्कार से भी इनको प्रोत्साहन और गायन के क्षेत्र में नया मुकाम मिला। हिंदी फ़िल्म जगत में गज़ल के सम्राट कहे जाने वाले जगजीत सिंह जी का मुंबई के लीलावती अस्पताल में १० अक्टूबर २०११ को देहावसान हो गया। उन्हें ब्रेन हैमरेज होने के कारण २३ सितम्बर को भर्ती किया गया था बीमारी की वज़ह से वो दो हफ़्ते से भी अधिक समय तक कोमा में रहे। उनकी मृत्यु पर पूरे भारत ने शोक मनाया था।  राजस्थान सरकार ने मरणोपरांत जगजीत सिंह को अपना उच्चतम नागरिक पुरस्कार यानी राजस्थान रत्न पुरस्कार प्रदान किया। जगजीत जी के सम्मान में भारत सरकार द्वारा २०१४ में उनकी तस्वीर लगी एक डाक टिकट जारी की। 

आज भी लोग उनके गज़ल गायकी के दिवाने हैं,  भले ही जगजीत सिंह हमारे बीच इस दुनिया में नहीं हैं  लेकिन निशानी के तौर पर उनकी ख़ूबसूरत ग़ज़लें हमेशा उनकी यादों को हमारे दिलों में ज़िंदा रखेंगी।

一 बालानाथ राय  

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