हिन्दी कविता | बालानाथ राय


मेरी कुछ कविताएँ आप सभी के समक्ष 

01- मंज़िल मुझे पाना है


सफ़र ज़रा मुश्किल है,
राह अभी बाक़ी है।
हिम्मत नहीं हारूंगा मैं,
चाह अभी बाक़ी है।
पांव अभी थका नहीं,
अभी दूर जाना है।
जितना दूर है मंज़िल
उतना करीब जाना है।
हर मुश्किल से लड़ना है,
हौसला बुलन्द रखना है।
ठोकर लगे या छाला पड़े,
मंज़िल मुझे पाना है।


02- दोपहर की धूप


दोपहर की धूप में
दरख़्तों की छाँव में
हर थका हुआ किसान
अपने खेत लहलहाते देख
कई ख़्वाब सज़ाकर
होठों पर मुस्कान लिए
सो जाता है सुकून से
माँ वसुंधरा के गोद में


03- घर का बंटवारा


ये लोग इतनें नाराज़ हुए यहाँ क्यूँ बैठे हैं,
अपनी आँखें इतनी लाल किये क्यूँ बैठे हैं,
कोई तो बताओं इतनें लोग यहाँ क्यूँ बैठे हैं,
मोहल्ले में अशान्ति का माहौल बनाएँ क्यूँ बैठे हैं।

कल तक जो साथ थे आज अलग क्यूँ बैठे हैं,
घर के सामने इतनें सामान बिख़राए क्यूँ बैठे हैं,
फिर से ये दोनों भाई पंच बुलाए यहाँ क्यूँ बैठे हैं,
दोनों भाई बंटवारे का मुद्दा लिए यहाँ क्यूँ बैठे हैं।

पिता की कमाई पर ये झंझट किये क्यूँ बैठे हैं,
दो गज़ ज़मीन के लिए मतभेद किये क्यूँ बैठे हैं,
माँ-बाप के आंशू को नज़रंदाज़ किये क्यूँ बैठे हैं,
बात-बात पर ये आपस में झंझट किये क्यूँ बैठे हैं।

चन्द रुपयों के लिए ये होस खो क्यूँ बैठे हैं,
अपने ही अपनों के ख़ून के प्यासे क्यूँ बैठे हैं,
सब बांटकर ये लोग अब भी यहाँ क्यूँ बैठे हैं,
माँ-बाप को बाँटने का मुद्दा उठाये क्यूँ बैठे हैं।

सब बांटकर ये माँ-बाप को बोझ बनाएँ क्यूँ बैठे हैं,
माँ-बाप के प्यार को ये दोनों जड़ भुलाएँ क्यूँ बैठे हैं,
माँ-बाप को बाँट कर ये निर्लज अब यहाँ क्यूँ बैठे हैं,
चलो चलें निर्लजों को देखने के लिए हम यहाँ क्यूँ बैठे हैं।


04- आज दिल से दिल की मुलाक़ात हो गयी


एक दिन था अकेला आज उनसे मुलाकात हो गयी,
कुछ वो मुझसे कहने लगी कुछ मैं उससे कहने लगा।
आज दिल से दिल की मुलाकात हो गयी,
तन्हा मेरी ज़िंदगी में ख्वाबों की बरसात हो गयी।
एक अनजाने अपने पहलू से मीठी कुछ बात हो गयी,
वो तो बस मेरे दिल का हाल है इतनी बात वो कह गयी।
आज दिल से दिल की मुलाकात हो गयी,
तन्हा मेरी ज़िंदगी में ख्वाबों की बरसात हो गयी।
मेरी सांसों में मेरी रूह में धड़कन बन के वो बस गयी,
तन्हा मेरी ज़िंदगी में ख्वाबों की रात हो गयी।
आज दिल से दिल की मुलाकात हो गयी,
तन्हा मेरी ज़िंदगी में ख्वाबों की बरसात हो गयी।


05- ख़ुशियाँ बांटना तो सीख लो


चन्द शब्दों में ख़ुशियाँ बांटना तो सीख लो,
गम के मौसम में बहार लाना तो सीख लो,
जज़्बाती होने से पहले,
ज़ज्बात को समझना तो सीख लो,
ज़िन्दगी को आसान बनाना तो सीख लो।
ठोकर लगने से पहले,
रास्ते से पत्थर हटाना तो सीख लो,
मदद मांगने से पहले मदद करना तो सीख लो,
सम्मान पाने से पहले सम्मान देना तो सीख लो,
ज़िन्दगी को आसान बनाना तो सीख लो।


06- मैं धरती माँ हूँ


कहीं बंजर सी हो गयी हूँ मैं,
कहीं हरियाली में खुश हूँ मैं,
कहीं पर्वत सी स्थिर हो गयी हूँ मैं,
अपने उम्मीदों के दरख्त,
अपने वक्ष में लिए,
आसमां के अत्यंत समीप आ गयी हूँ मैं,
लेकिन ये हिम की चादर
पिघलती रहती है हर रोज,
मेरे वक्ष का लावा ,
ये जल बहाकर ले जाता है;
मेरा वजूद को,
कतरा-कतरा मिटती रहती हूँ मैं,
लेकिन मैं अडिग हूँ,
अपने वजूद के लिए;
हमेशा लड़ती रहती हूँ मैं,
क्योंकि बहुत किसान बेटों की आस हूँ मैं,
ना रहने का ठिकाना,
ना सर पर छत,
ऐसे बेटों की खाट हूँ मैं,
हाँ मैं माँ हूँ ,मैं धरती माँ हूँ।


07- कुछ तो उस मज़दूर की मज़दूरी दे दो


कितने हफ़्तों से लिखवा रहे हो साहब,
आज तो उस मजदूर की मजदूरी दे दो।
वो अपने मेहनत के रोटी के हकदार हैं साहब,
कुछ तो उस मजदूर की मजबूरी समझो।

इतनी कड़ी धूप में वो दिनभर,
हाड़ तोड़ कर काम किया।
ईंट पत्थर का वो बोझ अपने सर पर उठाया,
मिस्त्री मालिक के गाली को अनसुनी किया।

वो भी तुम्हारी तरह इन्सान है साहब,
उसे भी गुस्सा आया होगा, पर
कुछ कहने से वो स्वयं को रोक लिया होगा।
उसके भी बीवी-बच्चों के कुछ तो शौक होंगे,

अपने परिवार के बारें में सोचकर,
वो मन ही मन में सिसक गया होगा।
साहब पूरी नहीं तो अधूरी ही दे दो,
कुछ तो उस मजदूर की मजदूरी दे दो।


08-तुमको याद करना चाहता हूँ


अब फ़िर से तुमको याद करना चाहता हूँ,
अब खुद को मैं बर्बाद करना चाहता हूँ।
तुमसे गुफ़्तगू किये बरसों गुजर गया,
अब फ़िर से तुमसे बात करना चाहता हूँ।

तेरी बाहों में हर शाम गुज़ारना चाहता हूँ,
तेरे इश्क़ में फ़िर से फना होना चाहता हूँ।
तेरे हर दर्द को अपना बनना चाहता हूँ,
तेरे हर दर्द में मैं साथ रहना चाहता हूँ।

अब फ़िर से दिल से दिल मिलाना चाहता हूँ,
ज़िन्दगी सारी तुम पर क़ुर्बान करना चाहता हूँ।
तुम जो आई हो दिल के शहर में मेरे,
तो ये चेहरा मैं शाद करना चाहता हूँ।


09- मेरी माँ भी


मेरी माँ भी शायद ज्यादा चिल्लाती है
हर बात पर वो ज्यादा गुस्सा दिखाती है
न जाने क्यूँ अपना सब बात मनवाती है
गुस्सा होकर फिर अपना प्यार दिखाती है
अपने गुस्से में शायद स्नेह छुपाती है
एक वही तो है जो अच्छा रास्ते दिखाती है
एक वहीं तो है जो गुस्से में भी रहती हैं
तब भी खाना बड़े प्यार से खिलाती है
ऐसे गुस्से वाला प्यार कहाँ से लाती है
एक माँ ही तो है जो निस्वार्थ प्यार करती है


10- फिर मिट्टी हो जाउंगा


मिट्टी का ही बना हूँ
मिट्टी फिर हो जाऊँगा
मिट्टी का ही खेल है
मिट्टी होते जाना है
मिट्टी से ही तू है
मिट्टी से ही मैं हूँ
मिट्टी से ही वो है
मिट्टी से ही ये है
बिना मिट्टी के क्या है
सारा खेल है मिट्टी का
मिट्टी से ही तन है
मिट्टी से ही जान
मिट्टी ये कमाल है
जीवन सारा मिट्टी से


11- रब से मांगी है दुआ नये साल में


रब से मांगी है दुआ नये साल में,
सबकी ज़िन्दगी हो सुहानी नये साल में,
गुज़रे वक़्त का अन्धेरा मिट जाए नये साल में,
खुशी चमकती रहे सबकी निगाह में।

बह न पाए फिर वह इन्सानियत का लहू,
हो यही मेहरबानी नये साल में,
कोई ग़मगीन माहौल क्यों हो भला नये साल में,
हर तरफ खुशी का माहौल हो इस नये साल में।

हर भूखे को रोटी मिले इस नये साल में,
हर प्यासे को पानी मिले इस नये साल में,
गिर न पाए कभी यही है आरजू
हसरतों का महल इस नये साल में।

ख़ुशनुमा माहौल से गुजरती रहे,
दोस्तों की कहानी इस नये साल में,
फुल खिलते रहे सबकी ज़िन्दगी की राह में,
सभी की इच्छायें पूरी हो इस नए साल में।


12- तुम मेरी पुकार हो माँ


ज्ञान की भण्डार हो माँ
विद्वानों की जननी हो माँ
तुम मेरी पुकार हो माँ
सदैव मेरे साथ रहा करो माँ

अज्ञानियों को ज्ञान देती हो माँ
अन्धेरों में उजाला लाती हो माँ
तुम मेरी पुकार हो माँ
सदैव मेरे साथ रहा करो माँ

करुणा की भण्डार हो माँ
मृदुवाणी की बोल हो माँ
तुम मेरी पुकार हो माँ
सदैव मेरे साथ रहा करो माँ

राजनीति की गुण सिखाती हो माँ
न्याय की परिभाषा हो माँ
तुम मेरी पुकार हो माँ
सदैव मेरे साथ रहा करो माँ

कलाकारों के अन्तर्मन में बसती हो माँ
वैज्ञानिकों को बढ़ावा देती हो माँ
तुम मेरी पुकार हो माँ
सदैव मेरे साथ रहा करो माँ

मेरी हर कामयाबी का राज हो माँ
अपने बेटे पर ऐसे ही कृपा बनाये रखो माँ
तुम मेरी पुकार हो माँ
सदैव मेरे साथ रहा करो माँ


13- वो शाम बहुत सुहानी थी


वो शाम बहुत सुहानी थी,
प्रकृति सबसे सुन्दर रुप में आयी हुई थी,
आसमां में लालिमा छाई हुई थी,
सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था,
देख के उसको मेरा दिल मचल, रहा था
वो शाम बहुत सुहानी थी।

गंगा किनारे बैठे थे हम,
दोस्तों में बाँट रहे थे गम,
हवाएँ गुनगुना रही थी,
मेरे दिल में हलचल मचा रही थी,
वो शाम बहुत सुहानी थी।

उस शाम का लुफ्त उठाया हमने,
जब आपस में हँसी मज़ाक उड़ाया हमने,
शुरु जब मज़ाक का दौर हुआ,
ठहाको का शोर चारों ओर हुआ,
वो शाम बहुत सुहानी थी।


14- होली


दिल में उठी है ख़ुशियों की लहर होली में
मस्तियाँ घूमती है शाम-ओ-गाँव होली में 
चारो तरफ फाग के गीत गाये जा रहे होली में
सबके चेहरे पर मुस्कान आई होली में 
अबीर उड़ती है बन कर गुबार होली में 
राहें पटी हुई अबीर-ओ-गुलाल होली में 
मिलाओ गले से गले इस बार होली में 
उतारो एक बरस का ख़ुमार होली में  
दिल से दिल मिलाने दो दिलदार होली में 
गुलाबी गाल पर कुछ रंग लगाने दो होली में


15- भाईचारा 


इस जहाँ में नफ़रतें क्यूँ फैलानी हैं 
भाईचारे के प्रेम को यूं हीं बढ़ानी हैं 
यहाँ चार दिन तुम्हें गुज़ारनी हैं 
और चार दिन हमें गुज़ारनी हैं
कुछ तुम गुज़ारों मुहब्बत से 
कुछ हम गुज़ारे मुहब्बत से


16- रात बीत गई 


रात बीत गई
सूरज ने अपना किरण फैलाया
चिड़ियों की चहचहाहट ने पूरे गाँव को जगाया
व्यस्तता लग जाती है हर घर में
घर के बड़े हो या हो फिर छोटे
बड़े जाते है खेत खलिहान
और छोटे जाते है पाठशाला
कोई योगा करता,
कोई गंगा स्नान को जाता,
कोई जाता भ्रमण को,
और कोई जाता मन्दिर, मस्जिद जाता
पूजा-पाठ इबादत से जीवन का दर्शन पाता
घर-घर में औरत अपने बच्चों को
पाठशाला जाने को तैयार कराती
और सबके लिए भोजन पकाती
यूँ ही उछल कूद में जल्दी से
बीत जाती है सुबह,
जैसे मानो बाल्यावस्था लगता है सुबह।


17- यूँ  नज़रें मिलाकर फ़िर तुम 


यूँ   नज़रें  मिलाकर   फ़िर  तुम 
क्यूँ   नज़रें    झूका    लेती   हो
कभी  बताओ  तो  सही  हमको
इतना   तुम   क्यूँ   शरमाती  हो

सुना   हैं   मिरे  नाम   सुनते  ही 
तुम   ख़ुशी  में   झूम  जाती  हो
जब भी तिरी गली से गुज़रता हूँ 
आहट मिरी कैसे जान जाती हो

मिरे सामने  आने  से  ऐ  जानम
तुम   इतना   क्यूँ   घबराती   हो
जब  भी  मैं  तिरे  घर  आता  हूँ 
क्यूँ  तुम  परदे  मे  छुप जाती हो

हर शाम  मिलकर फ़िर  ऐसे तुम 
क्यूँ हवा की तरह गुज़र जाती हो
सब  जानते   हुए  फ़िर  भी  तुम 
क्यूँ  मुझे  ऐसे  इतना  सताती हो 


18- अपनों के लिए कुछ करना चाहता हूँ 


मैं अब कुछ  साल  पीछे  जाना चाहता हूँ,
अपनी पूरानी ज़िन्दगी में ढलना चाहता हूँ।
मैं अब और दर्द को  सहना नहीं चाहता हूँ,
अब मैं सुकून की ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ।

मैं दुनिया से मतलब नहीं रखना चाहता हूँ, 
अब सिर्फ़ अपनों के लिए जीना चाहता हूँ।
मैं अपनों  के लिए  कुछ  करना चाहता हूँ,
अपनों के चेहरे पर शाद देखना चाहता हूँ। 


19- चुनाव में नेता जी 


गाँव-गाँव घुमने लगे हैं,नेता जी
गरीब-गरीब चिल्लाने लगे हैं,नेता जी 
मजदूरों की पीड़ा समझने लगे हैं,नेता जी 
पगडंडीयों पर दौड़ लगाने लगे हैं,नेता जी 

अपने-अपने काम गिनाने लगे हैं,नेता जी 
एक दूजे पर उंगली उठाने लगे हैं,नेता जी
कभी-कभी भावुक होने लगे हैं,नेता जी
जनता को छलने लगे हैं,नेता जी

झूठे-झूठे जुमले करने लगे हैं,नेता जी 
माइक पर शेर की तरह दहाड़ने लगे हैं,नेता जी 
एक दूसरे को पछाड़ने लगे हैं,नेता जी 
गड़े से गड़े मुद्दे उखाड़ने लगें हैं,नेता जी

शब्दों का मायाजाल डालने लगे हैं,नेता जी 
नीचता की हदें पार करने लगे हैं,नेता जी 
वोटरों को बारीकियों से तोड़ने लगे है,नेता जी 
जनता को छलने लगे हैं,नेता जी


20- प्रवासी मज़दूर 


देश की हालात दिखाते 
भूख-प्यास से तड़पड़ाते 
अपनी ज़िंदगी से जूझते 
वो बच्चे, बूढ़े, जवान
और गर्भवती महिलाएं
कड़ी धूप और
रास्तों की तपिश सहते
बिखरी उम्मीदें, 
चेहरे पर हताशा और
कंधे पर बोझ लिए 
चले जा रहे है नंगे पाँव 
छालों के साथ 
आँखों में अश्रु लिए 
ऊँचे-ऊँचे इमारतों और
सत्ताधिकारियों पर 
सवाल खड़ा करते 
चले जा रहे हैं 
अपने गाँव की ओर...

© बालानाथ राय

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